Utpanna Ekadashi Vrat Katha: भगवान विष्णु और राक्षस मुर का युद्ध

Utpanna Ekadashi Vrat Katha: युधिष्ठिर ने पूछा, “हे भगवान! आपने हजारों यज्ञ और लाख गौदान को भी एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया। तो इस व्रत की अद्भुतता क्या है?”

भगवान विष्णु ने कहा, “हे युधिष्ठिर! सतयुग में महादैत्य मुर उत्पन्न हुआ था। उसका पुत्र मुर नामक राक्षस बड़ा बलवान और भयानक था। उसने सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग से भगा दिया। देवताओं ने इस दुर्दशा को शिव जी से कहा, और उन्हें भगवान विष्णु की शरण में जाने का सुझाव मिला।

मुर नामक राक्षस के साथ युद्ध: Utpanna Ekadashi Vrat Katha
इंद्र ने कहा, “हे भगवान, इस दुर्दशा का संहार कीजिए, ताकि हम फिर स्वर्ग में सुकूँ ढूंढ़ सकें।” भगवान विष्णु ने इस पर सहमति दी और महादैत्य मुर के साथ भयानक युद्ध का आयोजन किया।

युद्ध के दौरान, भगवान विष्णु ने चतुर्भुज रूप में धरती पर अवतार लिया। मुर ने बहुतेजस्वी रूप में उत्तराधिकारी बनकर संग्राम किया।

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दिव्य युद्ध और मुर का संहार: Utpanna Ekadashi Vrat Katha
दोनों दिव्य शक्तियों के बीच बहुतेरी युद्ध रहा, लेकिन मुर बहुत देर तक अजेय बना रहा। अंत में, भगवान विष्णु ने हेमवती नामक सुंदर गुफा में गए, जहां वे योगनिद्रा में सो गए। मुर ने भगवान को सोते हुए देखा और उन्हें मारने का निश्चय किया। लेकिन जैसे ही मुर ने हमला किया, भगवान की दिव्य रूप से उत्साहित होकर देवी प्रकट हुईं। देवी ने मुर को ललकारा और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया।

उत्पन्ना एकादशी का आविर्भाव: Utpanna Ekadashi Vrat Katha
जब भगवान उठे, तो सब कुछ उन्हें पता चला। देवी से उन्होंने अपनी उत्पत्ति की विविधता और देवी के साथ किए गए युद्ध का वर्णन सुना। इसके बाद भगवान ने देवी को आशीर्वाद दिया और कहा कि वह उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी, और उनके भक्त उसे भी पूजेंगे।

इस रूप में, मुर नामक राक्षस के संहार से उत्पन्ना एकादशी का आविर्भाव हुआ और इस दिन की महत्वपूर्णता बढ़ गई। भक्तगण इस दिन विशेष भक्ति और व्रत के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति प्राप्त करते हैं।

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