Rishi Panchami 2023 की तारीख: भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी व्रत मनाया जाता है। इस साल ऋषि पंचमी का पर्व 20 सितंबर को है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भारत के ऋषियों का विशेष सम्मान किया जाता है।
Rishi Panchami 2023 की तारीख: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी व्रत का आयोजन किया जाता है। यह पर्व गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है। इस साल, ऋषि पंचमी का पर्व 20 सितंबर को है।
सिद्धांत के अनुसार, इस दिन ऋषियों का सम्मान विशेष ध्यान में रखा जाता है, और ऋषि पंचमी के दिन ब्राह्मणों को दान देना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही, ऋषि पंचमी के दिन व्रत करने से अनजाने में हुई घटनाओं के लिए भी क्षमा प्राप्त होती है। इसलिए, आइए जानते हैं ऋषि पंचमी व्रत के बारे में महत्वपूर्ण बातें…
ऋषि पंचमी का महत्व : Rishi Panchami 2023
ऋषि पंचमी के दिन, मुख्य रूप से सप्तऋषियों को समर्पित किया जाता है। धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार, ये सात ऋषि हैं – वैश्य, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। साथ ही, इसे मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और सप्तऋषियों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
Rishi Panchami 2023
पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि 19 सितंबर को शुरू होकर, दोपहर 01 बजे 43 मिनट से शुरू होकर, 20 सितंबर को दोपहर 02 बजे 16 मिनट पर समाप्त होगी। ऋषि पंचमी व्रत 20 सितंबर को मनाया जाएगा। ऋषि पंचमी की पूजा का उत्सव सुबह 11 बजे 19 मिनट से दोपहर 01 बजे 45 मिनट तक रहेगा।
ऋषि पंचमी व्रत विधि : Rishi Panchami 2023
- 20 सितंबर को, ऋषि पंचमी के दिन, सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।
- इसके बाद, घर और मंदिर को अच्छी तरह से साफ-सफाई करें।
- फिर, पूजन की सामग्री जैसे कि धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत, आदि को एक वस्त्र पर लाल या पीले रंग के वस्त्र में सजाएं।
- ऑफिस पर सप्तऋषियों की तस्वीरें भी रख सकते हैं।
- आप दीक्षा हो तो इस दिन अपने गुरु की तस्वीर भी स्थापित कर सकते हैं।
- अब, आपको फल-फूल और नैवेद्य आदि तैयार करना होगा और फिर अपनी गलती के लिए क्षमा प्राप्त करने की प्रार्थना करें।
- इसके बाद, सभी के साथ आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।
पौराणिक कथा : Rishi Panchami 2023
सतयुग में, वेद-वेदांग दर्शन वाले एक ब्राह्मण थे, जिनका नाम सुमित्र था, और उनकी पत्नी का नाम जयश्री था। वे जीवन-निर्वाह के लिए खेती का काम करते थे। उनके पुत्र का नाम सुमति था, जो पूर्ण पंडित और अतिथि-सत्कार करने वाले थे। एक दिन, उनके साथ होने वाली दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण वह और उनकी पत्नी मृत्यु को प्राप्त हो गई।
उनकी मृत्यु के बाद, सुमित्र को बच्चे को बचाने के लिए एक बछड़े की तरह रहने की प्राप्ति हुई। वह दिन-रात किसी भोजन के लिए जगह नहीं मिल रही थी, और उसने देखा कि उसका पिता और मां उसके लिए उपासना कर रहे थे।
जयश्री ने खेत में खेड पकाई थी, जिसे एक सांप ने जूठा कर दिया। सांप के जूठे होने के कारण, उसने खेड को छूने नहीं दिया और सुमित्र के पिता के साथ होने वाले श्राद्ध में इस बात की गुजारिश की कि वह दुख नहीं पहुंचाएं। इस पर सुमित्र के पिता का उदास हो गया और वह अपने पास रह जाने के लिए अपने बेटे को भी खेड के साथ बजुआ पर खाद्य पदार्थ की तलाश में बहार भेज दिया।
खेड को खाने के बाद, सुमति के बेटे ने देखा कि उसकी गरीब माता-पिता पशुओं के योनि में जन्म ले रहे हैं। वे इस घटना को देखकर बहुत दुःखी हो गए और उन्होंने उ
नके कल्याण के लिए क्या किया जानने के लिए ऋषियों से पूछा। ऋषियों ने उन्हें ऋषि पंचमी व्रत का आयोजन करने की सलाह दी, जिसके परिणामस्वरूप उनके माता-पिता पशुओं के योनि से मुक्त हो गए।