Rama Ekadashi 2023
Rama Ekadashi 2023: रमा एकादशी, हिंदू कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण दिन, कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष (चंद्रमा के घटते चरण) की एकादशी तिथि (ग्यारहवें दिन) पर आती है।
यह शुभ दिन ब्रह्मांड के संरक्षक भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। रमा एकादशी, जिसे रंभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, सभी एकादशियों में एक विशेष स्थान रखती है और इसे बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह आमतौर पर दिवाली से पहले आता है, जो रोशनी के त्योहार से चार दिन पहले पड़ता है।
रमा एकादशी का महत्व: Rama Ekadashi 2023
रमा एकादशी को हिंदू कैलेंडर में सबसे शुभ और महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक माना जाता है। भक्तों का मानना है कि इस व्रत को करने से उन्हें विभिन्न पापों से मुक्ति मिल सकती है, जिसमें सबसे गंभीर पाप, ब्रह्म-हत्या (ब्राह्मण की हत्या) भी शामिल है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि जो लोग रमा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और ईमानदारी से करते हैं उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।
रमा एकादशी 2023 की तिथि: Rama Ekadashi 2023
2023 में रमा एकादशी 8 नवंबर को है। एकादशी तिथि 8 नवंबर को सुबह 08:23 बजे शुरू होती है और 9 नवंबर को सुबह 10:41 बजे समाप्त होती है। भक्त 9 नवंबर की सुबह व्रत रखेंगे और संबंधित अनुष्ठान करेंगे।
शुभ पूजा समय: Rama Ekadashi 2023
9 नवंबर 2023 को पूजा करने का आदर्श समय सुबह 06:39 बजे से 08:00 बजे के बीच है। भक्त इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा और पूजा कर सकते हैं।
व्रत तोड़ना (परना): Rama Ekadashi 2023
रमा एकादशी का व्रत 10 नवंबर 2023 को सुबह 06:39 बजे से 08:50 बजे के बीच समाप्त किया जा सकता है। इस दौरान, भक्त अपना उपवास तोड़ सकते हैं और पारण अनुष्ठान के हिस्से के रूप में ब्राह्मणों को भोजन करा सकते हैं।
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अनुष्ठान और पालन: Rama Ekadashi 2023
- सुबह का स्नान: रमा एकादशी के दिन, भक्तों को सुबह का स्नान करना चाहिए, जो शरीर और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है।
- साफ पोशाक: स्नान के बाद, भक्तों को पूजा शुरू करने से पहले साफ और ताजा पोशाक पहननी चाहिए।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर: पूजा के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति या छवि स्थापित करनी चाहिए। फूल, धूप, दीप और विभिन्न खाद्य पदार्थों का प्रसाद तैयार करना चाहिए।
- संकल्प (प्रतिज्ञा): भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद पर ध्यान केंद्रित करते हुए, समर्पण के साथ व्रत का पालन करने का संकल्प लेना चाहिए।
- पंचामृत स्नान: भगवान विष्णु की मूर्ति या छवि को दूध, दही, शहद, घी और चीनी के मिश्रण पंचामृत से स्नान कराया जाता है।
- भक्ति गीत और मंत्र: पूजा के दौरान भगवान विष्णु को समर्पित मंत्र और भजन, विशेष रूप से विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है।
- भगवान विष्णु की कहानी का वर्णन: पूजा के दौरान भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की दिव्य कहानियाँ और किंवदंतियाँ सुनाई जाती हैं।
- एकादशी व्रत: व्रत के दौरान भक्त भोजन और पानी से दूर रहते हैं, जो कि एकादशी को सूर्योदय से शुरू होता है और द्वादशी को सूर्योदय पर समाप्त होता है।
- दान और दान: इस दिन विशेष रूप से ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान देना एक पुण्य कार्य माना जाता है।
- व्रत तोड़ना: द्वादशी के दिन, पारण अनुष्ठान के बाद, भक्त सादे भोजन के साथ अपना उपवास तोड़ सकते हैं।
रमा एकादशी व्रत कथा:
एक समय की बात है कि मुचकुंद नाम का एक सत्यवादी तथा विष्णु भक्त राजा था। राजा ने अपनी प्यारी सी बेटी चंद्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र सोभन से किया था। राजा मुचुकुंद एकादशी का व्रत विधिवत तरीके से करता है। इतना ही नहीं उसकी प्रजा भी एकादशी के नियमों का अच्छी तरह से पालन करती थी।
एक बार कार्तिक मास के दौरान सोभन ससुराल आया। उस दिन रमा एकादशी का व्रत था। राजा ने घोषणा कर दी कि सभी लोग रमा एकादशी का व्रत नियम पूर्वक करें। राजा की पुत्री चंद्रभागा को लगा कि ऐसे में उसके पति को अधिक पीड़ा होगी क्योंकि वह कमजोर हृदय का है। जब सोभन ने राजा का आदेश सुना तो पत्नी के पास आया और इस व्रत से बचने का उपाय पूछा। उसने कहा कि यह व्रत करने से वह मर जाएगा।
इस पर चंद्रभागा ने कहा कि इस राज्य में रमा एकादशी के दिन कोई भोजन नहीं करता है। यदि आप व्रत नहीं कर सकते हैं तो दूसरी जगह चले जाएं। इस पर सोभन ने कहा कि वह मर जाएगा लेकिन दूसरी जगह नहीं जाएगा, वह व्रत करेगा। उसने रमा एकादशी व्रत किया, लेकिन भूख से उसका बुरा हाल हो गया था। रमा एकादशी की रात्रि के समय जागर भी ण था, वह रात सोभन के लिए असहनीय थी। अगले दिन सूर्योदय से पूर्व ही भूखे सोभन की मौत हो गई।
ऐसे में राजा मुचकुंद ने अपने दामाद सोभन का शव को जल प्रवाह करा दिया था और अपनी बेटी को सती न होने का आदेश दिया। उसने बेटी से भगवान विष्णु पर आस्था रखने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर बेटी ने व्रत को पूरा किया। उधर रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से सोभन जीवित हो गया और उसे विष्णु कृपा से मंदराचल पर्वत पर देवपुर नामक उत्तम नगर मिला। राजा सोभन के राज्य में स्वर्ण, मणियों, आभूषण की कोई कमी न थी।
एक दिन राजा मुचकुंद के नगर का एक ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए सोभन के नगर में पहुंचा। जहां उसने राजा सोभन से मुलाकात की। राजा ने अपनी पत्नी चंद्रभागा तथा ससुर मुचकुंद के बारे में पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वे सभी कुशल हैं। आप बताएं, रमा एकादशी का व्रत करने के कारण आपकी मृत्यु हो गई थी। अपने बारे में बताएं। फिर आपको इतना सुंदर नगर कैसे प्राप्त हुआ? तब सोभन ने कहा कि यह सब रमा एकादशी व्रत का फल है, लेकिन यह अस्थिर है क्योंकि वह व्रत विवशता में किया था। जिस कारण अस्थिर नगर मिला, लेकिन चंद्रभागा इसे स्थिर कर सकती है।
उस ब्राह्मण ने सारी बातें चंद्रभागा से कही। तब चंद्रभागा ने कहा कि यह स्वप्न तो नहीं है। ब्राह्मण ने कहा कि नहीं, वह प्रत्यक्ष तौर पर देखकर आया है। उसने चंद्रभागा से कहा कि तुम कुछ ऐसा उपाय करो, जिससे वह नगर स्थिर हो जाए।
तब चंद्रभागा ने उसे देव नगर में जाने को कहा। उसने कहा कि वह अपने पति को देखेंगी और अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर कर देगी। तब ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत पर वामदेव के पास ले गया। वामदेव ने उसकी कथा सुनकर उसे मंत्रों से अभिषेक किया। फिर चंद्रभागा ने व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण किया और सोभन के पास गई। सोभन ने उसे सिंहासन पर अपने पास बैठाया।
फिर चंद्रभागा ने पति को अपने पुण्य के बारे में सुनाया। उसने कहा कि वह अपने मायके में 8 वर्ष की आयु से ही नियम से एकादशी व्रत कर रही हैं। उस व्रत के प्रभाव से यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा यह प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। दिव्य देह धारण किए चंद्रभागा अपने पति सोभन के साथ उस नगर में सुख पूर्वक रहने लगी।
निष्कर्ष:
कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली रमा एकादशी का हिंदू परंपरा में बहुत महत्व है। भक्त आशीर्वाद पाने, अपनी आत्मा को शुद्ध करने और खुद को पापों से मुक्त करने के लिए यह व्रत रखते हैं। यह दिन अनुष्ठानों, पूजा और उपवास द्वारा चिह्नित है, जो सभी भगवान विष्णु को समर्पित हैं। भक्तिपूर्वक अनुष्ठानों का पालन करने से, भक्तों का मानना है कि उन्हें ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे आध्यात्मिक विकास और कल्याण होता है।