MahaLaxmi Vrat 2023 | कथा | पूजा विधि | 2023 में कब है महालक्ष्मी व्रत | महालक्ष्मी व्रत के 16 दिन | 2023 में लक्ष्मी व्रत कब शुरू हो रहा है।

(MahaLaxmi Vrat 2023) महालक्ष्मी व्रत हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है, जिसे धन की देवी, देवी लक्ष्मी के प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। देवी लक्ष्मी जी भगवान श्री विष्णु की पत्नी मानी जाती हैं। महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर आगामी 16 दिनों तक चलता है, और इसका समापन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। व्रत की अवधि तिथियों के आधार पर पंद्रह या सत्रह दिनों तक हो सकती है।

महालक्ष्मी व्रत का पालन धन और संपत्ति की देवी, महालक्ष्मी के प्रति विशेष भक्ति और पूजन के रूप में किया जाता है। इस व्रत के दौरान व्रती व्यक्ति अपने जीवन में समृद्धि, सौभाग्य, और धन की प्राप्ति की कामना करता है।

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देवी राधा की जयंती रूप में भी मनाई जाती है, जिसे राधा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन दूर्वा अष्टमी व्रत भी मनाया जाता है, जिसमें दूर्वा घास की पूजा की जाती है। इस दिन को ज्येष्ठ देवी पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, और इसके अंतर्गत त्रिदिवसीय देवी पूजा का आयोजन किया जाता है।

MahaLaxmi Vrat 2023

करिष्येऽहं महालक्ष्मी व्रत से स्वत्परायणा।
तविध्नेन में मातु समाप्ति स्वत्प्रसादतः।।

देवी माँ, मैं आपकी सेवा में पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा के साथ इस महाव्रत का पालन करूंगी। आपकी अनुग्रह से यह व्रत बिना किसी अड़चन के पूरा हो।

MahaLaxmi Vrat 2023: महत्वपूर्ण जानकारी

  • MahaLaxmi Vrat 2023
  • महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ : शुक्रवार, 22 सितंबर 2023
  • महालक्ष्मी व्रत समाप्त: शुक्रवार, 06 अक्टूबर 2023

MahaLaxmi Vrat 2023: पूजा विधान

1. सोलह तार का डोरा लें और उसमें सोलह गाँठ बनाएं। फिर हल्दी की गाँठ को घिसकर डोरे को रंग दें। डोरे को हाथ की कलाई में बाँधें।

2. यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलता है। व्रत पूरा होने पर, एक वस्त्र से मंडप बनाएं और उसमें लक्ष्मी माता की प्रतिमा रखें।

3. प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं और फिर सोलह प्रकार से पूजा करें।

4. रात्रि में तारागणों को चंद्रमा पृथ्वी के प्रति अघ्र्य करें और लक्ष्मी माता की प्रार्थना करें।

5. व्रत रखने वाली स्त्रियाँ ब्राह्मणों को भोजन कराएं, उनके साथ हवन कराएं और खीर की आहुति दें।

6. चन्दन, ताल, पत्र, पुष्पमाला, अक्षत, दुर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल, और अन्य पदार्थों को नए सूप में सोलह-सोलह आदिक संख्या में रखें। फिर दूसरे नए सूप को ढककर निम्नलिखित मंत्र को पढ़कर लक्ष्मी माता को समर्पित करें। यदि आप सुपरक्लोन Replica Rolex के लिए बाज़ार में हैं, तो सुपर क्लोन रोलेक्स आपके लिए सही जगह है! नकली रोलेक्स घड़ियों का ऑनलाइन सबसे बड़ा संग्रह!

क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा।
व्रतेनाप्नेन सन्तुष्टा भवर्तोद्वापुबल्लभा।।

क्षीर सागर में प्रकट हुई लक्ष्मी, चन्द्रमा की बहन, श्रीविष्णु वल्लभा, महालक्ष्मी इस व्रत के पालन से प्रसन्न होती हैं।

इसके बाद, चार ब्राह्मणों और सोलह ब्राह्मणियों को भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं, फिर घर में बैठकर स्वयं भोजन करते हैं। इस तरह के व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति इस लोक में सुख भोगते हैं और बहुत देर तक लक्ष्मी लोक में सुखी रहते हैं।

MahaLaxmi Vrat 2023: कथा

बहुत प्राचीन समय की बात है, जब एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण निवास करता था। वह ब्राह्मण नियमित रूप से भगवान श्री विष्णु की पूजा करता था। उसकी पूजा और भक्ति से भगवान विष्णु खुश होकर उसे दर्शन देने आए और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना पूछी –

ब्राह्मण ने उसे बताया कि देवी लक्ष्मी जी का निवास उसके घर में हो सकता है। यह सुनकर, भगवान विष्णु ने ब्राह्मण को लक्ष्मी जी को अपने घर आने के लिए आमंत्रित करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि वह स्त्री, जो मंदिर के सामने आकर उपले थापती है, वास्तव में देवी लक्ष्मी हैं।

देवी लक्ष्मी जी के आने के बाद, वह ब्राह्मण के घर में धन और समृद्धि की वर्षा करती हैं। भगवान विष्णु ने ब्राह्मण को बताया कि वह महालक्ष्मी व्रत करें, 16 दिन तक व्रत रखें, और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्घ्य दें। ब्राह्मण ने देवी की सलाह के अनुसार व्रत और पूजा की और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुख करके पुकारा। इस तरह से, उसकी मनोकामना पूरी हो गई, और वह व्यक्ति धन्य हुआ। इसके बाद से ही महालक्ष्मी व्रत को इस तरह से मनाया जाता है, जिससे व्रत करने वाले की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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